
रिपोर्ट-कोटडाटाइम्स पाठक-धरमाराम गरासिया(kotdatimes)
29/09/2020
आबूरोड़ (सिरोही)
भाखर क्षेत्र की ओर से आबूरोड बाजार में प्रतिदिन आ रही वालम काकड़ी की खेप के खरीदार उतरते ही टूट पड़ते हैं। इस वर्ष मानसून देर से आने के कारण बाज़ार में थोड़े समय बाद वालम काकड़ी आई है। यह आदिवासी क्षेत्रों में विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी पैदावार अधिक होती है। मक्का को बोते समय उसी खेत में बिच अंतराल में इसके बीज रोपे जाते हैं। पकने के बाद इसके बीजों को संभाल कर रखा जाता है। क्योंकि फिर मानसुन ऋतुओं में वहीं देशी बीज प्रयोग में लिए जाते हैं। ताकि नस्ले कायम रखी जा सके।
पिछले कुछ वर्षों से आदिवासियों को इसकी ज्यादा आमदनी मिल रही हैं। वालम काकड़ी बेचने आए उपला खेजडा की शांतिबाई ने बताया कि दैनिक 500 से 1000 रुपए की औसतन आय हो जाती है। आबूरोड के बाजार में पहुंचने पर मात्र दो-तीन घंटों में ही बिक्री हो जाती है। यह देशी काकड़ी स्वादिष्ट होने के कारण बाज़ार में वालम काकड़ी की मांग ज्यादा रहती है। ज्यादातर इसे आदिवासी महिलाएँ बेचती है, इसे देशी भाषा में चिभड़ा व सिकन भी कहा जाता है। वालम काकड़ी आबुरोड़,अमीरगढ़,कोटडा,सिरोही,डूंगरपुर,दांता,पोशिना,खेडभ्रह्मा,हड़ाद,अंबाजी जैसे क्षेत्रों में पाई जाती है ।